देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म में भोजन और पोषण की देवी मानी जाती हैं। उनका नाम “अन्न” (भोजन) और “पूर्णा” (पूर्ण या पूर्णता) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “भोजन की पूर्णता प्रदान करने वाली”। वे भौतिक निवाले के साथ-साथ आध्यात्मिक भोजन की प्रदाता भी मानी जाती हैं। देवी अन्नपूर्णा भगवान शिव की पत्नी पार्वती का ही एक रूप हैं, जो संसार के कल्याण और पोषण के लिए समर्पित है।
देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति या चित्र में उन्हें आमतौर पर एक कलश (भंडार जिसमें अन्न रखा जाता है) के साथ दिखाया जाता है, और कभी-कभी उनके हाथ में एक चमच या लडल होता है, जिससे वे भक्तों को भोजन परोसती हैं। उन्हें अक्सर शिव के साथ भी दिखाया जाता है, जो उनसे भिक्षा मांगते हुए प्रस्तुत किए जाते हैं, यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक उत्थान के लिए भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी आवश्यक है।
देवी अन्नपूर्णा की पूजा भारत में विशेष रूप से वाराणसी में बहुत प्रचलित है, जहां अन्नपूर्णा मंदिर स्थित है। इस मंदिर में देवी की पूजा विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है। भक्त देवी अन्नपूर्णा से यह आशीर्वाद मांगते हैं कि उनके घर में कभी भी अन्न की कमी न हो और सभी प्रकार की समृद्धि और खुशहाली बनी रहे।
अन्नपूर्णा 5 शक्तिशाली मंत्र (5 powerful Annapurna Mantra)
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमाशङ्करी कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थ: “कैलास पर्वत की गुफाओं में निवास करने वाली, गौरी, उमा, शंकरी, कौमारी, जो वेदों के अर्थों को प्रकाशित करती हैं, जो ‘ओम्कार’ बीजाक्षर की स्वामिनी हैं, मोक्ष के द्वार को खोलने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी, कृपा का आधार प्रदान करने वाली माँ अन्नपूर्णेश्वरी, कृपया मुझे भिक्षा दो।”
इस श्लोक में भक्त माँ अन्नपूर्णा से न केवल भौतिक भोजन के लिए भिक्षा मांगता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उनकी कृपा और आशीर्वाद की भी प्रार्थना करता है। माँ अन्नपूर्णा की उपासना इस विश्वास के साथ की जाती है कि वह अपने भक्तों को कभी भी भूखा नहीं रहने देंगी और उन्हें जीवन में सभी प्रकार की समृद्धि प्रदान करेंगी।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थ: “योग का आनंद देने वाली, शत्रुओं का नाश करने वाली, धर्म और अर्थ में निष्ठा प्रदान करने वाली, चंद्र, सूर्य और अग्नि की भांति प्रकाशमान लहरियाँ उत्पन्न करने वाली, तीनों लोकों की रक्षा करने वाली, सभी ईश्वरीय समृद्धियों और सभी वांछित चीजों को प्रदान करने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी, कृपा का आधार प्रदान करने वाली माँ अन्नपूर्णेश्वरी, कृपया मुझे भिक्षा दो।”
इस श्लोक के माध्यम से, भक्त माँ अन्नपूर्णा की अद्भुत शक्तियों की स्तुति करता है, जो न केवल भौतिक समृद्धि प्रदान करती हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और योग के आनंद को भी सक्षम बनाती हैं। उन्हें त्रैलोक्य (तीनों लोकों) की रक्षक के रूप में वर्णित किया गया है और उनकी कृपा से सभी ईश्वरीय समृद्धियाँ और वांछित चीजें प्राप्त होती हैं। भक्त माँ अन्नपूर्णा से निवेदन करते हैं कि वे अपनी कृपा का आधार बनाकर उन्हें भिक्षा प्रदान करें।
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थ: “दृश्य और अदृश्य विभूतियों को प्रकट करने वाली, ब्रह्मांड के भीतर के विस्तार को समेटे हुए, लीला के नाटक के सूत्रों को विभाजित करने वाली, ज्ञान के प्रकाश की पहली किरण, श्री विश्वेश (भगवान शिव) के मन को प्रसन्न करने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी, कृपा का आधार प्रदान करने वाली माँ अन्नपूर्णेश्वरी, कृपया मुझे भिक्षा दें।”
माँ अन्नपूर्णा को यहाँ ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित किया गया है, जिनकी लीलाएँ सृष्टि के नाटक को नियंत्रित करती हैं। वे ज्ञान की दीप्ति हैं और उनकी कृपा से भक्तों के मन की संतुष्टि होती है। इस श्लोक के माध्यम से, भक्त माँ अन्नपूर्णा से उनकी दिव्य कृपा और आशीर्वाद की याचना करते हैं, जिससे उनके जीवन में समृद्धि, ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो।
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थ: “विविध रत्नों से सजी हुई भूषणों वाली, स्वर्ण वस्त्रों से अलंकृत, मोतियों की माला जो वक्षस्थल पर खूबसूरती से लटक रही है और उनके कुम्भस्थल को सजा रही है, काश्मीरी अगरु (चंदन) से सुगंधित अंग रुचिर (सुंदर) वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी, कृपा का आधार प्रदान करने वाली माँ अन्नपूर्णेश्वरी, कृपया मुझे भिक्षा दें।”
इस श्लोक में माँ अन्नपूर्णा की भव्यता और सौंदर्य का वर्णन है। उन्हें न केवल भौतिक पोषण की देवी के रूप में वर्णित किया गया है, बल्कि उनके दिव्य स्वरूप और सौंदर्य को भी उजागर किया गया है। उनके वस्त्र और आभूषण उनकी दिव्यता और महिमा को दर्शाते हैं, और उनकी सुगंध से उनके दिव्य अंगों की शोभा और भी बढ़ जाती है। भक्त माँ से भिक्षा की याचना करते हुए उनकी कृपा और सहायता की कामना करता है।
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थ: “नित्य आनंद देने वाली, वर और अभय की मुद्रा दिखाने वाली, सौंदर्य के रत्नों की खान, सभी भयानक पापों को दूर करने वाली, साक्षात माहेश्वरी (महादेवी), प्रलयकाल के पर्वतों के वंश को पवित्र करने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी, कृपा का आधार प्रदान करने वाली माँ अन्नपूर्णेश्वरी, कृपया मुझे भिक्षा दें।”
इस श्लोक में माँ अन्नपूर्णा को उनके विभिन्न दिव्य गुणों और कार्यों के लिए स्तुति की गई है। वे न केवल आध्यात्मिक और भौतिक आनंद प्रदान करती हैं, बल्कि भक्तों को भय और पाप से मुक्ति दिलाती हैं, उनके जीवन में सौंदर्य और पवित्रता भरती हैं। माँ अन्नपूर्णा की उपासना से भक्तों को आध्यात्मिक शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होती है, और उन्हें जीवन में सभी वांछित फल मिलते हैं।